ताज़िया ना रख पाने से इमाम हुसैन को मानने वाले दुखी ,ताज़िये के अंदर बनी कब्र का क्या है महत्व-एस.एम.मासूम।

 
ग्लोबल भारत न्यूज़ नेटवर्क
प्रतापगढ़ | मुहर्रम का महीना आते ही इमाम हुसैन के चाहने वाले जगह जगह मजलिस (शोक सभाएं) करते ,अलम ताज़िया के जुलुस निकालते नज़र आने लगते हैं लेकिन इस वर्ष अगस्त २०२० में पड़ने वाले त्योहारों के लिए सरकार की तरफ से कोविड -१९ महामारी की रोकथाम के लिए दिशा निर्देश के अनुसार सड़कों पे भीड़ न जमा किये जाने और कोई जुलूस ना निकालने की बात कही गयी जो आज की आवश्यकता है |

बिना भीड़ जमा किये मजलिस ऑनलाइन हो सकती है , ताज़िया ,अलम घरों में सजाया जा सकता है और इस प्रकार मुहर्रम के दस दिन सरकारी दिशा निर्देश अनुसार मनाय जा सकते हैं और ऐसा किया भी जा रहा है लेकिन मुहर्रम में ताज़िया केवल रखा नहीं जाता है बल्कि अपने इलाक़े की कर्बला में ले जा के दफ़्न भी किया जाता है जिसके लिए चाहे दो चार लोगों के साथ जाना हो लेकिन सड़कों पे ताज़िया ले जाना पड़ेगा |

ताज़िया क्या है इसे समझने के लिए इस बात समझना आवश्यक है की मुहर्रम का चाँद होते ही हर हुसैन का चाहने वाला कर्बला इमाम हुसैन जहाँ दफन हैं वहां जाना चाहता है और जब वो नहीं जा पाता तो वो जहाँ रहता है वहीँ पे इमाम हुसैन के रौज़े की नक़ल बना के चौक, इमामबाड़ों और घरों में रखता है और इमाम हुसैन हुसैन की शहादत को याद करता है |

ताज़िये के अंदर इमाम हुसैन की क़ब्र बनी होती है और यह ताज़िया मुहर्रम का चाँद होते ही रखा जाता है और दस मुहर्रम को अपने अपने इलाक़े की कर्बला में वैसे ही दफ़्न कर दिया जाता है जैसे की घरों से किसी अपने को उसके इंतेक़ाल के बाद क़ब्रिस्तान ले जा के दफन किया जाता है |

ताज़िये का अकार इलाक़ाई लोगों की पसंद के अनुसार हुआ करता है | ताज़िया ताज़िया इमाम हुसैन की क़ब्र और रौज़े की नक़ल और ताजियादारी हकीकत में कर्बला के शहीदों को श्रद्धांजलि देने का एक तरीका है|

हुसैन को चाहने वाले मुसलमान कोविड -१९ महामारी की रोकथाम के लिए दिए गए दिशा निर्देश के अनुसार बिना भीड़ जमा किये और सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हुए ही मुहर्रम मना रहा है वे बस इतना चाहते हैं की उन्हें दस मुहर्रम आशूरा को जिस दिन कर्बला में पैगम्बर ऐ इस्लाम के नवासे इमाम हुसैन को उनके परिवार के साथ भूखा प्यासा शहीद किया उस दिन उन्हें ताज़िया अपने इलाक़े की कर्बला केवल कुछ व्यक्तियों द्वारा ले जा के दफ़्न करने की इजाज़त दी जाय वरना उन्हें ऐसा सोंच के दुःख होगा की हम अपने इमाम को दफ़्न भी इस वर्ष नहीं कर सके |