कैसे करे योगा, उज्जायी प्राणायाम करने का लाभ तथा विधि

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ग्लोबल भारत न्यूज़ नेटवर्क

सेहत

उज्जायी प्राणायाम:- यह प्राणायाम अत्यंत सरल व उपयोगी प्राणायाम है।पूरक व रेचक में गले को संकुचित करके इसकी आवाज होना, इसकी विशेषता है। इस प्राणायाम को सभी कर सकते हैं लेकिन इसको निराहार ही करना चाहिए। नहीं तो यह नुकसानदायक होता है।

◆◆विधि
इसको करने के लिए पद्मासन की स्थिति में कमर सीधी करके बैठते हैं। प्राणायाम करते समय आंखों को बंद रखते हैं। फिर धीरे-धीरे श्वास लेते हैं व पेट के निचले हिस्से को थोड़ा अंदर खींचकर उसी स्थिति में उसे पूरा प्राणायाम होने तक इसमे पूरक, कुंभक,व रेचक निम्न तरह से करते हैं।

◆◆पूरक- इसमें मुंह बंद करके, दोनों नासिकाओं से धीरे-धीरे हवा अंदर लेते हैं। यह हवा तब तक अंदर लेनी चाहिए जब तक कि वह कंठ को छूती हुई हृदय तक न पहुंच जाए। यह श्वास छाती द्वारा लेना आवश्यक है क्योंकि तभी हवा का कर्शण कंठ में होगा। अगर यह कर्शण किसी कारणवश नाक में हो तो वहां शुश्कता व वंदना बढ़ती है। इस समय चेहरे की मांसपेशियों को ढीला छोड़ देना चाहिए। पूरक का समय थोड़ा कम रखने से कुंभक और रेचक का अनुपात अपने आप ठीक हो जाता है।

◆◆कुंभक- कुंभक करते समय जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। शुरू में कुंभक को भी पूरक जितने समय तक करना चाहिए। धीरे-धीरे करके इसका समय बढ़ाते हुए पूरक का दुगुना कर देना चाहिए। अगर कुंभक को 10 सेकंड से अधिक ऐसा करने से छाती व पेट में दबाव बढ़ता है तथा मन केन्द्रित व स्थिर हो जाता है। जब रेचक शुरू करना हो तो जालंधर व मूलबंध को छोड़ देना चाहिए तत्पश्चात ही रेचक शुरू करना चाहिए।

◆◆रेचक- हठयोगानुसार रेचक बांयी नासिका से किया जाता है। इसमें नाक के दाहिने छिद्र को दायें अंगूठे से बंद करते हैं। जब केवल आध्यात्मिक उद्देश्यों को प्राप्त करना होता है तब दोनों नाक से इसको किया जाता है।इसमें भी रेचक करते समय गले से इसकी आवाज निकलती है। पूरक में यह आवाज श्वास अंदर खींचते समय होती है। रेचक का अनुपात पूरक से दोगुना होता है। जब केवल बायीं नाक से रेचक होता है तो यह 1:2 का प्रमाण साध्य होता है। रेचक को ज्यादा लंबा नहीं करना चाहिए, इससे पूरक का समय अनुपात बिगड़ जाता है।

◆◆लाभ
1- पद्मासन लगाकर यह प्राणायाम करने से पांव की ओर ज्यादा खून न जा कर यह केवल धड़ की ओर ज्यादा भेजा जाता है।
2- उज्जायी करने से रक्तचाप नहीं बढ़ता है।
3-आंखें बंद होने के कारण वाह्य जगत से आने वाली संवेदनाएं आसानी से अंदर प्रवेश नहीं कर पाती जिससे मन की चंचलता खत्म या कम होती है।
4- इस प्राणायाम द्वारा अहंकार, चिंता, गुस्सा व तनाव खत्म हो जाता है।
5- इसको करने से मानसिक तनाव खत्म हो जाता है ,इस प्राणायाम के अभ्यास से हृदय गति कम व स्थिर होती है।
6- उज्जायी प्राणायाम के द्वारा साधक अपने आप को तरोताजा व प्रफुल्लित समझता है।
7- इस को नियमित रूप से करने से आलस्य दूर होता है।
8- इसके द्वारा लसिका ग्रंथियों का रक्ताभिसरण अच्छी तरह होने से वहां कोई अशुद्धि संचित नहीं हो पाती।
9- यह कंठ का स्वास्थ्य सुधारता है व आवाज मधुर होती है।
10- इससे कंठ में जमा कफ निकल जाता है और गला साफ हो जाता है।

◆◆सावधानियां
इसकी सावधानियां निम्न है।
1- आसन की स्थिति में कमर या रीढ की हड्डी सीधी होनी चाहिए, नहीं तो प्राणायाम करने में कठिनाई आती है।
2- प्राणायाम करते समय आंखों को पूर्ण रुप से बंद रखना चाहिए, जिससे बाह्य जगत में ध्यान बँट ना सके।
3- प्राणायाम खत्म होने के 3-4 मिनट तक शांतिपूर्वक आंखें बंद करके बैठे, इससे शरीर को ऊर्जा व शांति मिलती है।
4- जिस साधक को पद्मासन नहीं आता हो वह सामान्य वज्रासन में भी बैठ सकता है।
5- इस प्राणायाम में हवा जोर से खींचनी चाहिए।

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